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रण जीत की वाल से…

मित्रों, “कश्मीर फाईल्स” नाम की फिल्म की रिलीज को लेकर कुछ प्रश्न दिलो दिमाग़ में बार बार आ रहें हैं जो गौर करने लायक हैं।

1. पहला, ये फिल्म कश्मीर में दशकों पहले हो रहे उस आतंकवाद के बारे में है जो अब अस्तित्व में नहीं हैं। तो अब शांति स्थापित होने के बाद में 2022 में देश के शांत माहौल में ज़हर घोलने के लिए इसे रिलीज़ करने की स्वीकृति क्यों दी गई?

2. दूसरा, इस फिल्म से समाज को ऐसी क्या प्रेरणा या सीख मिलती है या ऐसा क्या फायदा है जो इसे टैक्स फ्री कर दिया गया है?

3.तीसरा, इस फिल्म की राजनैतिक स्तर पर इतनी पब्लिसिटी क्यूँ की जा रही है कि राजनैता टीम बना कर देखने जा रहे हैं? आतंकवाद तो पंजाब ने भी बहुत झेला था और शायद फिल्म भी बनी है पर राजनेताओ द्वारा यूँ पब्लिसिटी तो नहीं की गई कभी? तो क्या दशकों बाद इस दबी राख की चिंगारी को सोच समय कर भड़काने का अभिप्राय केवल आने वाले चुनाव में हिन्दू वोट एकजुट करके राजनैतिक लाभ उठाने के लिए है ??

4. चौथा, क्या कशमीर में ब्राह्मणों के इलावा कोई और जातियाँ नहीं रह रही थी जिन्होंने आतंकवाद का दंश नहीं सहा, झेला और सहा तो अन्य बिरादरियो ने भी है तो फिर केवल ब्राह्मणों जो लाखों की संख्या मे थे वो ही पलायन क्यों कर गए, अन्य जातियोँ ने क्यों पलायन नहीं किया और किया तो केवल ब्राह्मण विस्थापित की ही चर्चा क्यों होती रही है?

5. पांचवां, जब इतनी संख्या में ब्राह्मण पलायन कर रहे थे तो केन्द्र में दिल्ली में भाजपा समर्थित सरकार थी तब भाजपा केवल मूक दर्शक क्यों बनी रहीं, भाजपा ने इस पलायन को रोकने के लिए यथोचित कदम क्यों नहीं उठाए ?

6. छठा, आर एस एस और बजरंग दल जो भाजपा की जड़े सींचते हैं, और अक्सर चुनाव के समय हिन्दू वोट एकजुट कर के भाजपा को सत्ता में लाने के लिए “हिन्दू खतरे में है ” का नारा पूरे जोर शोर से बुलंद करते हैं, वो जब सच में हिन्दू खतरे में होता है तो कहाँ दुम दबा के छुप जाते हैं। जब कोई हिन्दू बिरादरी इस कदर पलायन कर रही थी संघ के स्वयं सेवक और बजरंग दल के लठैत कश्मीर क्यों नहीं गए आतंकवाद को टक्कर देने ? आखिर किस दिन के लिए उनकी शाखाओं में उन्हें ट्रेनिंग दी जाती है?

7. सातवां, भाजपा लगभग आठ साल से सत्ता में हैं तो भाजपा सरकार ने स्वयं क्यूँ ठोस कदम नहीं उठाए कश्मीरी विस्थापि को पुनः स्थापित करने के लिए?

8. आखिरी सवाल ये है कि आखिर क्यों इतने दशकों के बाद केवल राजनैतिक लाभ अर्थात हिन्दू वोट एकजुट करने के लिए पुराने ज़ख्म कुरेद कर समाज की भावनाओं को लहू लुहान करने की कुचेष्टा की जा रही है?
क्या भाजपा विकास के मुद्दे पर वोट मांगने में शर्मसार है, आखिर विकास के मुद्दे को उछाल कर सत्ता में आई भाजपा इस मुद्दे से कन्नी क्यों काटती है??
कब तक “हिन्दू खतरे में है” कह कर सत्ता में टिके रहना चाहती है?
कशमीर फाईल्स नाम की फिल्म भी केवल “हिन्दू खतरे में है” की अगली कड़ी है ? 2024 के चुनाव तक काश जनता समझ जाती कि हिन्दू नहीं बल्कि भाजपा खतरे में है!!

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